लेखनी कहानी -16-Jan-2023 3)स्कूल चले हम ( स्कूल - कॉलेज के सुनहरे दिन )
शीर्षक = स्कूल चले हम
ओहो हो ओहो हो हो हो…
सवेरे सवेरे यारों से मिलने
बन ठन के निकले हम
सवेरे सवेरे यारों से मिलने
घर से दूर चले हम
रोके से ना रुके हम
मर्ज़ी से चलें हम
बादल सा गरजें हम
सावन सा बरसे हम
सूरज सा चमके हम
स्कूल चलें हम
स्कूल चलें हम
इसको पढ़ कर कुछ याद आया आप सब ही को, ये वो पहला गाना था जो सब को बेहद प्यारा लगता था, जैसे ही ये सर्व शिक्षा अभियान का गाना टीवी या रेडियो पर बजता, बच्चों की जुबान अपने आप ही इस गाने की लेह में बढ़ने लगती, ज्यादा तो याद नहीं रह पाता बस शुरू की एक दो लाइन और पीछे की आखिरी लाइन ही सब को याद रहती थी " स्कूल चले हम "
ये गीत नहीं बल्कि एक तरह की हकीकत थी और है, सवेरे सवेरे उठ कर, यारों से ही तो मिलने जाने की जल्दी होती थी,
पढ़ने से ज्यादा दोस्तों के साथ मस्ती करने जाने की जल्दी होती थी।फिर चाहे वो पहली क्लास के बच्चें हो या बारहवीं क्लास के बच्चें
जैसे जैसे अपने दिमाग़ के घोड़े दौड़ा कर, अपनी बीती जिंदगी में झाँकने की कोशिश करता हूँ, तब कही ना कही कोई ना कोई ऐसा लम्हा मिल ही जाता है, जिसे याद कर एक बार फिर अपने बचपन की यादें ताज़ा हो ही जाती है
उन्ही यादों में से एक लम्हा वो भी था, ज़ब उस लाल बिल्डिंग वाले स्कूल में हमने ज्यादा साल तो नहीं बस कुछ चंद साल ही बिताये थे, और वो शायद तीन साल थे उसके बाद हम दुसरे स्कूल में चले गए थे,
उन्ही सालों में से एक साल ऐसा था, जिसमे कुछ ऐसा हुआ था जो की हमें आज़ भी याद है
बात है 15 अगस्त की यानी की आज़ादी के दिन को याद करने की, हमारे विद्यालय में ध्वजा रोहण के बाद एक रैली निकलना थी, जो की स्कूल से निकल कर एक जगह जानी थी जिसे हमारे यहाँ SDM कोर्ट के नाम से जानी जाती है, वहाँ पर सारे स्कूल के बच्चें एकत्रित होते है,
हमारे शहर के चैयरमेन और अन्य सरकारी इदारों में काम करने वाले लोग वहाँ एकत्रित होते है, बच्चें तरह तरह के प्रोग्राम करते है, और मिष्ठान वितरित किया जाता है
हमें भी उस रैली में जाना था, अपने दोस्तों के साथ हाथ में झंडा थामे, लेकिन ना जाने क्यूँ, 15 अगस्त वाले दिन हमारी तबीयत ख़राब हो गयी थी जिसके चलते हम स्कूल ना जा सके क्यूंकि बुखार आने की वजह से हमारी आँख नहीं खुली या यूं कहे अम्मी ने हमें उठाया ही नही
लेकिन जैसे ही हमारी नींद खुली, अपने आप को घर में देख कर और अपने भाई बहनो को घर पर ना देख कर हमने रोना शुरू कर दिया और ज़िद्द पकड़ ली थी की हमें स्कूल जाना है,
ड्रेस पहन कर अपने स्कूल के साथ जाना है
लेकिन हमारी तबीयत ख़राब थी और हम छोटे भी बहुत थे, जिसके चलते हमें स्कूल और रैली के साथ भेजना उचित नहीं था, लेकिन हमारी ज़िद्द के आगे घर वालों को घुटने टेकने पड़े, लेकिन हमें स्कूल के साथ नहीं बल्कि हमारे पापा के साथ, स्कूल की ड्रेस में भेजा गया दवाई खिला कर,
हमें आधे रास्ते में ही हमारे स्कूल की रैली मिल गयी और हम अपने पापा के साथ उस रैली का हिस्सा बन गए थे, रो रोकर हमारी आँखे लाल हो गयी थी, लेकिन उस रैली का हिस्सा बनने के बाद, अपने पापा के कंधो पर बैठ कर ज़ब SDM कोर्ट पहुचे तब हमारे चहरे पर एक मुस्कान थी और उसी के साथ ज़ब वहाँ मिलने वाली चीज़ें हमें मिली तो हमारी ख़ुशी दोबाला हो गयी थी
उस स्कूल और उससे जुडी यादें बस इतनी ही थी, आज़ भी ज़ब कभी उस गली और उस स्कूल की तरफ से हमारा गुज़र होता है, तो ऐसा लगता है मानो हमारा बचपन हमें दूर खड़ा बुला रहा है, सब कुछ चलचित्र की भांति आँखों के सामने आने लगता है
अगला स्कूल कौन सा था, और वहाँ से किस तरह की यादें जुडी हुयी है, इन सब का तस्करा ( वर्णन ) आगे के स्मरण में करेंगे, ज़ब तक के लिए अलविदा, एक बार फिर से आपका धन्यवाद मेरे साथ जुड़ने के लिए और मेरी खट्टी मीठी यादों को पढ़ने के लिए
स्कूल / कॉलेज के सुनहरे दिन
Radhika
09-Mar-2023 01:41 PM
Nice
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अदिति झा
21-Jan-2023 11:02 PM
Nice 👍🏼
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Gunjan Kamal
20-Jan-2023 04:11 PM
वाह! बेहतरीन संस्मरण 👏👌🙏🏻
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